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भारत के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी | Freedom fighters in Hindi

भारत के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी | Freedom fighters in Hindi

भारत के स्वंतत्रतासंग्राम सेनानी – हम सभी जानते है कि  हमारा देश 15 अगस्त 1947 को आजाद हुआ था । (swatantrata senani essay in hindi) प्रत्येक वर्ष की तरह हम इस वर्ष भी भारत 15 अगस्त को अपना स्वतंत्रता दिवस मनाएंगे । भारत का स्वतंत्रता दिवस (अंग्रेज़ी: Independence Day of India, हिंदी : इंडिपेंडेंस डे ऑफ़ इंडिया, संस्कृतम् : “स्वातन्त्र्यदिनोत्सवः”) हर वर्ष 15 अगस्त को मनाया जाता है।

भारत के स्वंतत्रतासंग्राम सेनानी

भारत के स्वंतत्रतासंग्राम सेनानी

सन् 1947 में इसी दिन भारत के निवासियों ने ब्रिटिश शासन से स्‍वतंत्रता प्राप्त की थी। (essay on indian freedom fighters in hindi) इस दिन ही हमारे भारत देश को वर्षों की गुलामी के बाद आज़ादी मिली थी। क्या आप जानते है की हमको ये आज़ादी केसे मिली थी। हमारा देश सैकड़ों वर्षों से ग़ुलामी की जंजीरों में जकड़ा हुआ था । हमारा भारत देश सन 1947 में आज़ाद हुआ|

यह आजादी लाखों लोगों के त्याग और बलिदान के कारण संभव हो पाई. इन महान (swatantrata senani) लोगों ने अपना तन-मन-धन त्यागकर देश की आज़ादी के लिए सब कुछ न्योछावर कर दिया. लेकिन कुछ ऐसे भी लोग थे जो एक नई प्रतीक या प्रतिमा के साथ उभरे| आजादी के लिए हमारे स्वतंत्रता सेनानियों (swatantrata sangram senani) ने अपने जीवन का त्याग किया और इन्हीं लोगों के कारण आज हम सभी स्वतंत्र देश में रहने का आनंद ले रहे हैं.

स्वतंत्र भारत का हर एक व्यक्ति आज इन वीरों और महापुरुषों का ऋणी है जिन्होंने अपना सब कुछ छोड़ सम्पूर्ण जीवन देश की आजादी के लिए समर्पित कर दिया. भारत माता के ये महान सपूत आज हम सब के लिए प्रेरणा के स्रोत हैं. इनकी जीवन गाथा हम सभी को इनके संघर्षों की बार-बार याद दिलाती है और प्रेरणा देती है. हमारे देश की आजादी. इस पूरी लड़ाई में काई व्यक्तित्व उभरे, कई घटनाएं हुई, इस अद्भुत क्रांति में असंख्य लोग मारे गए, घायल हुए  इत्यादि. अपने सम्मान और गरिमा के लिए हर कोई अपने देश के लिए मौत को गले लगाने का फैसला नहीं कर सकता है!

भारत के स्वंतत्रतासंग्राम सेनानी

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम (swatantra senani) में ऐसें ऐसें वीरों के नाम स्वर्ण अक्षरों से लिखे है। जिन्होंने देश की मिट्टी के लिए अपनी जान कुर्बान कर दिया. अपने अकेले के दम पर अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई शुरू की. हमारे देश में ऐसे वीर योद्धा भी थे, जिन्होंने अपनी युवावस्था में सब कुछ त्याग कर देश की आजादी की लड़ाई (freedom fighter of india in hindi) में कूद पड़े थे. इन सभी भारत के सपूतों ने निडरता के साथ लड़कर बढ़-चढ़कर भारत की आजादी में अपना अहम योगदान दिया था.

आज हमारा भारतवर्ष अंग्रेजों से तो आजाद है, लेकिन भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, बेईमानी ने इसे अपना बंधक बना लिया है. इससे आजादी के लिए हमें एक क्रांति (freedom fighter in hindi) लानी होगी, और हमारे देश के युवा शक्ति को एक बार फिर जगाना होगा. आज हम अपने भारत के स्वतंत्रता सेनानियों (freedom fighters in Hindi) के बारे में पढ़कर जानेगें कि कैसे उन्होंने देश की आजादी के लिए जनचेतना और क्रांति को जगाया था| वैसे तो कई स्वतंत्रता सेनानी है लेकिन मैं यहाँ आपको कुछ क्रांतिकारियों (swatantrata senaniyon ke naam) का परिचय दे रहा हूँ| (freedom fighters of india list)

स्वंतत्रता सेनानी (Freedom Fighter)

1. मंगल पांडे (Mangal Pandey)
2. भगत सिंह (Bhagat Singh)
3. महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi)
4. पंडित जवाहरलाल नेहरू (Pundit Jawaharlal Nehru)
5. रानी लक्ष्मी बाई (Rani Laxmi Bai)
6. चंद्रशेखर आजाद (Chandra Shekhar Azad)
7. नेताजी सुभाष चंद्र बोस (Netaji Subhash Chandra Bose)
8. बाल गंगाधर तिलक (Bal Gangadhar Tilak)
9. बिरसा मुंडा (Birsa Munda)
10. शिवराम राजगुरु (Shivaram Rajguru)
11. सुखदेव थापर (Sukhdev Thapar)
12. डॉ भीमराव अम्बेडकर (Dr. Bhimrao Ambedkar)
13. खुदीराम बोस (Khudiram Bose)
14. लाला लाजपत राय (Lala Lajpat rai)
15. सरदार वल्लभ भाई पटेल (Sardar Vallabhbhai Patel)
16. सरोजनी नायडू (Sarojini Naidu)
17. बहादुर शाह जफ़र (bahadur shah zafar)
18. अशफ़ाकउल्ला खान (Ashfaq Ulla khan)
19. डॉ.राजेंद्र प्रसाद (Dr. Rajendra Prasad)
20. दुर्गावती देवी (दुर्गा भाभी) (Durgawati Devi)

भारत देश के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी (Freedom Fighters of India list in Hindi)

1. मंगल पांडे (Mangal Pandey)

भारत के स्वंतत्रतासंग्राम सेनानी

मंगल पांडे (Mangal Pandey in Hindi) का जन्म 19 जुलाई, 1827 उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के एक गांव नगवा में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था. उनके पिता का नाम ‘दिवाकर पांडे’ तथा माता का नाम ‘अभय रानी’ था. भारत के इतिहास में स्वतंत्रता सेनानीयों (freedom fighters of india in hindi) में सबसे पहले मंगल पांडे का नाम आता है | 1857 की लड़ाई के समय से इन्होंने आजादी की लड़ाई छेड़ दी और सबको इसमें साथ देने को कहा | वे सन 1849 में 22 साल की उम्र में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में शामिल हुए थे. वे बैरकपुर की सैनिक छावनी में “34वीं बंगाल नेटिव इन्फैंट्री” की पैदल सेना में एक सिपाही थे.

यहीं पर गाय और सूअर की चर्बी वाले राइफल में नई कारतूसों का इस्तेमाल शुरू हुआ. जिससे सैनिकों में आक्रोश बढ़ गया और परिणाम स्वरुप 9 फरवरी 1857 को ‘नया कारतूस’ को मंगल पाण्डेय ने इस्तेमाल करने से इनकार कर दिया. 29 मार्च सन् 1857 को अंग्रेज अफसर मेजर ह्यूसन भगत सिंह से उनकी राइफल छीनने लगे और तभी उन्होंने ह्यूसन को मौत के घाट उतार दिया साथ ही अंग्रेज अधिकारी लेफ्टिनेन्ट बॉब को भी मार डाला. इस कारण उनको 8 अप्रैल, 1857 को फांसी पर लटका दिया गया. मंगल पांडे की मौत के कुछ समय पश्चात प्रथम स्वतंत्रता संग्राम शुरू हो गया था जिसे 1857 का विद्रोह कहा जाता है.

2. भगत सिंह (Bhagat Singh)

भारत के स्वंतत्रतासंग्राम सेनानी

भगत सिंह (Bhagat Singh in Hindi) का नाम बच्चा बच्चा जानता है. इनका का जन्म 27 सितम्बर 1907 को पंजाब के लायलपुर जिले के बंगा में हुआ था. यह जिला अब पाकिस्तान है| उनके पिता का नाम किशन सिंह और माता का नाम विद्यावती था.यह एक किसान सिख राजपूत परिवार से थे| इनके पिता और चाचा दोनों स्वतंत्रता की लड़ाई में शामिल थे, उन दिनों शहीद भगत सिंह (स्वतंत्रता सेनानी bhagat singh) का एक नारा (Bhagat Singh ka nara) था, जो आज ‘इंक़लाब ज़िंदाबाद’ के नाम से हर देशवासियों की जबान पर है. 

13 अप्रैल 1919 को हुए जलियांवाला बाग हत्याकांड ने भगत सिंह की सोच पर बड़ा गहरा प्रभाव डाला था. लाहोर के नेशनल कॉलेज की पढाई छोड़कर भगत सिंह ने भारत की आज़ादी के के लिए नौजवान भारत सभा की स्थापना की| भगत सिंह ने राजगुरु के साथ मिलकर 17 दिसम्बर 1928 को लाहौर में सहायक पुलिस अधीक्षक रहे अंग्रेज़ अधिकारी जे० पी० सांडर्स को मारा था। इस कार्रवाई में क्रान्तिकारी चन्द्रशेखर आज़ाद ने उनकी पूरी सहायता की थी। 

भारत के स्वंतत्रतासंग्राम सेनानी

8 अप्रैल 1929 को अंग्रेज़ सरकार को जगाने के लिये ब्रिटिश भारत की तत्कालीन सेण्ट्रल एसेम्बली के सभागार संसद भवन मेंबम और पर्चे फेंके थे। बम फेंकने के बाद वहीं पर दोनों ने अपनी गिरफ्तारी भी दी। 

23 मार्च 1931 को शाम में करीब 7 बजकर 33 मिनट पर भगत सिंह (bhagat singh kranti sena) तथा इनके दो साथियों सुखदेव व राजगुरु को फाँसी दे दी गई। 7 अक्तूबर, 1930 को अदालत के द्वारा 68 पृष्ठों का निर्णय दिया, जिसमें भगत सिंह, सुखदेव तथा राजगुरु को फाँसी की सजा सुनाई गई। फाँसी की सजा सुनाए जाने के साथ ही लाहौर में धारा 144 लगा दी गई। 23 मार्च 1931 को शाम में करीब 7 बजकर 33 मिनट पर भगत सिंह तथा इनके दो साथियों सुखदेव व राजगुरु को फाँसी दे दी गई। 

कहा जाता है कि जेल के अधिकारियों ने जब उन्हें यह सूचना दी कि उनके फाँसी का वक्त आ गया है तो उन्होंने कहा था- “ठहरिए! पहले एक क्रान्तिकारी दूसरे से मिल तो ले।” फिर एक मिनट बाद किताब छत की ओर उछाल कर बोले – “ठीक है अब चलो।”

फाँसी पर जाते समय वे तीनों मस्ती से गा रहे थे –

मेरा रँग दे बसन्ती चोला, मेरा रँग दे।

मेरा रँग दे बसन्ती चोला। माय रँग दे बसन्ती चोला॥

3. महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi)

भारत के स्वंतत्रतासंग्राम सेनानी

महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi in Hindi) का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को गुजरात के पोरबंदर नामक स्थान पर हुआ था। इनका पूरा नाम मोहनदास करमचंद गांधी था। इनके पिता का नाम करमचंद गांधी और इनकी माता का नाम पुतलीबाई था. जो करमचंद गांधी जी की चौथी पत्नी थीं। मोहनदास अपने पिता की चौथी पत्नी की अंतिम संतान थे। 

महात्मा गांधी को ब्रिटिश शासन के खिलाफ भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन (indian freedom fighters in hindi) के नेता और ‘राष्ट्रपिता’ माना जाता है। मोहनदास का लालन-पालन वैष्णव मत में रमे परिवार में हुआ और उन पर कठिन नीतियों वाले जैन धर्म का गहरा प्रभाव पड़ा।अहिंसावादी महात्मा गाँधी ने अपनी स्वतंत्रता की लड़ाई पूरी सच्चाई और ईमानदारी से लड़ी. वे अहिंसा पर विश्वास रखते थे. और कभी किसी अंग्रेज को गली भी नहीं दी. गांधी जी जब केवल तेरह वर्ष के थे और स्कूल में पढ़ते थे उसी वक्त पोरबंदर के एक व्यापारी की पुत्री कस्तूरबा से उनका विवाह कर दिया गया। 

गांधी

1887 में मोहनदास ने जैसे-तैसे ‘मुंबई यूनिवर्सिटी’ की मैट्रिक की परीक्षा पास की और भावनगर स्थित ‘सामलदास कॉलेज’ में दाखिल लिया।साथ ही यह भी स्पष्ट था कि यदि उन्हें गुजरात के किसी राजघराने में उच्च पद प्राप्त करने की पारिवारिक परंपरा निभानी है तो उन्हें बैरिस्टर बनना पड़ेगा और ऐसे में गांधीजी को इंग्लैंड जाना पड़ा। उनके युवा मन में इंग्लैंड की छवि ‘दार्शनिकों और कवियों की भूमि, संपूर्ण सभ्यता के केन्द्र’ के रूप में थी। 

सितंबर 1888 में वह लंदन पहुंच गए। वहां पहुंचने के 10 दिन बाद वह लंदन के चार कानून महाविद्यालय में से एक ‘इनर टेंपल’ में दाखिल हो गए। 

सन् 1914 में गांधी जी भारत लौट आए। देशवासियों ने उनका भव्य स्वागत किया और उन्हें महात्मा पुकारना शुरू कर दिया। फरवरी 1919 में अंग्रेजों के बनाए रॉलेट एक्ट कानून पर, जिसके तहत किसी भी व्यक्ति को बिना मुकदमा चलाए जेल भेजने का प्रावधान था, उन्होंने अंग्रेजों का विरोध किया। फिर गांधी जी ने सत्याग्रह आंदोलन की घोषणा कर दी। 

भारत के स्वंतत्रतासंग्राम सेनानी

इस सफलता से प्रेरणा लेकर महात्‍मा गांधी ने भारतीय स्‍वतंत्रता (freedom in hindi) के लिए किए जाने वाले अन्‍य अभियानों में सत्‍याग्रह और अहिंसा के विरोध जारी रखे, जैसे कि ‘असहयोग आंदोलन’, ‘नागरिक अवज्ञा आंदोलन’, ‘दांडी यात्रा’ तथा ‘भारत छोड़ो आंदोलन’। 

गांधी जी के इन सारे प्रयासों से भारत को 15 अगस्‍त 1947 को स्‍वतंत्रता मिल गई। गांधी जी के बारे में प्रख्यात वैज्ञानिक आइंस्टीन ने कहा था कि- ‘हजार साल बाद आने वाली नस्लें इस बात पर मुश्किल से विश्वास करेंगी कि हाड़-मांस से बना ऐसा कोई इंसान भी धरती पर कभी आया था। विश्व पटल पर महात्मा गांधी सिर्फ एक नाम नहीं अपितु शांति और अहिंसा के प्रतीक हैं। ऐसे महान व्यक्तित्व के धनी महात्मा गांधी की 30 जनवरी, 1948 को नई दिल्ली के बिड़ला भवन में नाथूराम गोडसे द्वारा गोली मारकर हत्या कर दी गई।

4. पंडित जवाहरलाल नेहरू (Pundit Jawaharlal Nehru)

भारत के स्वंतत्रतासंग्राम सेनानी

भारत के पहले प्रधानमंत्री रहे पंडित जवाहरलाल नेहरू का जन्म 14 नवंबर 1889 इलाहाबाद में हुआ था। उनका जन्मदिन बाल दिवस के रूप में मनाया जाता है। उनके पिता का नाम मोतीलाल नेहरू था, जो एक धनाढ्य परिवार के थे और माता का नाम स्वरूपरानी था। पिता पेशे से वकील थे। जवाहरलाल नेहरू उनके इकलौते पुत्र थे और 3 पुत्रियां थीं। नेहरू जी को बच्चों से बड़ा स्नेह और लगाव था | और वे बच्चों को देश का भावी निर्माता मानते थे। 

उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अपने घर पर निजी शिक्षकों से प्राप्त की। पंद्रह साल की उम्र में वे इंग्लैंड चले गए और हैरो में दो साल रहने के बाद उन्होंने कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया जहाँ से उन्होंने प्राकृतिक विज्ञान में स्नातक की डिग्री प्राप्त की। 

1912 में भारत लौटने के बाद वे सीधे राजनीति से जुड़ गए। 1929 में पंडित नेहरू भारतीय राष्ट्रीय सम्मेलन के लाहौर सत्र के अध्यक्ष चुने गए जिसका मुख्य लक्ष्य देश के लिए पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त करना था। उन्हें 1930-35 के दौरान नमक सत्याग्रह एवं कांग्रेस के अन्य आंदोलनों के कारण कई बार जेल जाना पड़ा। उन्होंने 14 फ़रवरी 1935 को अल्मोड़ा जेल में अपनी ‘आत्मकथा’ का लेखन कार्य पूर्ण किया। 

भारत के स्वंतत्रतासंग्राम सेनानी

उन्होंने 6 बार कांग्रेस अध्यक्ष के पद (लाहौर 1929, लखनऊ 1936, फैजपुर 1937, दिल्ली 1951, हैदराबाद 1953 और कल्याणी 1954) को सुशोभित किया। 1942 के ‘भारत छोड़ो’ आंदोलन में नेहरूजी 9 अगस्त 1942 को बंबई में गिरफ्तार हुए और अहमदनगर जेल में रहे, जहां से 15 जून 1945 को रिहा किए गए। महात्मा गाँधी के संपर्क में आने के बाद वे आजादी की लड़ाई में कूद पड़े, और भारतीय कांग्रेस के अध्यक्ष बन गए |

आजादी के बाद पंडित जवाहरलाल नेहरु देश के प्रथम प्रधानमंत्री बने. आजादी की लड़ाई (importance of freedom in hindi) में वे महात्मा गाँधी के साथ मिल कर अंग्रेजों के खिलाफ खड़े रहे. 1962 में चीन ने धोखे से आक्रमण कर दिया। चीन का आक्रमण जवाहरलाल नेहरू के लिए एक बड़ा झटका था और शायद इसी वजह से उनकी मौत भी हुई। जवाहरलाल नेहरू को 27 मई 1964 को दिल का दौरा पडा़ जिसमें उनकी मृत्यु हो गई।

पंडित जवाहरलाल नेहरू के कार्यकाल में लोकतांत्रिक परंपराओं को मजबूत करना, राष्ट्र और संविधान के धर्मनिरपेक्ष चरित्र को स्थायी भाव प्रदान करना और योजनाओं के माध्यम से देश की अर्थव्यवस्था को सुचारू करना उनके मुख्य उद्देश्य रहे।

5. रानी लक्ष्मी बाई (Rani Laxmi Bai)

रानी लक्ष्मीबाई मराठा शासित झाँसी राज्य की रानी थीं | लक्ष्मीबाई का जन्म उत्तरप्रदेश के वाराणसी जिले में 19 नवम्बर 1828 को एक मराठी ब्राह्मण परिवार में हुआ था। (freedom fighters of 1857 in hindi) उनके बचपन का नाम मणिकर्णिका था पर परिवार वाले उन्हें प्यार से मनु पुकारते थे। जब लक्ष्मीबाई मात्र 4 साल की थीं तभी उनकी माता का स्वर्गवास हो गया। सन 1842 में मनु का विवाह झाँसी के राजा गंगाधर राव निम्बालकर के साथ हुआ | और इस प्रकार वे झाँसी की रानी बन गयीं और उनका नाम बदलकर लक्ष्मीबाई कर दिया गया। सन् 1851 में रानी लक्ष्मीबाई और गंगाधर राव को पुत्र रत्न की पारपत हुई पर चार महीने की आयु में ही उसकी मृत्यु हो गयी। उन्होंने वैसा ही किया और पुत्र गोद लेने के बाद 21 नवम्बर 1853 को गंगाधर राव परलोक सिधार गए। उनके दत्तक पुत्र का नाम दामोदर राव रखा गया।

रानी लक्ष्मीबाई

अंग्रेजों ने झाँसी राज्य का खजाना ज़ब्त कर लिया और रानी लक्ष्मीबाई के पति गंगादाहर राव के कर्ज़ को रानी के सालाना खर्च में से काटने का हुक्म दे दिया। अंग्रेजों ने लक्ष्मीबाई को झाँसी का किला छोड़ने को कहा। जिसके बाद उन्हें रानीमहल में जाना पड़ा। 7 मार्च 1854 को झांसी पर अंग्रेजो ने अधिकार कर लिया। (1857 freedom fighters information in hindi) रानी लक्ष्मीबाई ने हिम्मत नहीं हारी और हर हाल में झाँसी की रक्षा करने का निश्चय किया।

समस्त देश में सुसंगठित और सुदृढ रूप से क्रांति को कार्यान्वित करने की तिथि 31 मई 1857 निश्चित की गई, लेकिन इससे पूर्व ही क्रांति की ज्वाला प्रज्ज्वलित हो गई और 7 मई 1857 को मेरठ में तथा 4 जून 1857 को कानपुर में, भीषण विप्लव हो गए। कानपुर तो 28 जून 1857 को पूर्ण स्वतंत्र हो गया। अंगरेजों के कमांडर सर ह्यूरोज (1857 ke krantikari ki list) ने अपनी सेना को सुसंगठित कर विद्रोह दबाने का प्रयत्न किया।

भारत के स्वंतत्रतासंग्राम सेनानी

झाँसी की रानी, 1857 के प्रथम भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम की वीरांगना थी | (freedom fighters of india in hindi language) वे ऐसी वीरांगना थीं जिन्होंने मात्र 23 वर्ष की आयु में ही ब्रिटिश साम्राज्य की सेना से मोर्चा लिया और रणक्षेत्र में वीरगति को प्राप्त हो गयीं परन्तु जीते जी अंग्रेजों को अपने राज्य झाँसी पर कब्जा नहीं करने दिया।

अंग्रेजी हुकुमत से संघर्ष के लिए रानी लक्ष्मीबाई ने एक स्वयंसेवक सेना का गठन प्रारम्भ किया। इस सेना में महिलाओं की भी भर्ती की गयी और उन्हें युद्ध का प्रशिक्षण दिया गया। झाँसी की आम जनता ने भी इस संग्राम में रानी का साथ दिया। लक्ष्मीबाई की हमशक्ल झलकारी बाई को सेना में प्रमुख स्थान दिया गया।

सन 1858 के जनवरी महीने में अंग्रेजी सेना ने झाँसी की ओर बढ़ना शुरू कर दिया और मार्च में शहर को घेर लिया। लगभग दो हफ़्तों के संघर्ष के बाद अंग्रेजों ने शहर पर कब्जा कर लिया पर रानी लक्ष्मीबाई अपने पुत्र दामोदर राव के साथ अंग्रेजी सेना से बच कर भाग निकली। झाँसी से भागकर रानी लक्ष्मीबाई कालपी पहुँची और तात्या टोपे से मिलीं।

कालपी में महारानी और तात्या टोपे ने योजना बनाई और अंत में नाना साहब, शाहगढ़ के राजा, वानपुर के राजा मर्दनसिंह आदि सभी ने रानी का साथ दिया

18 जून 1858 को ग्वालियर का अंतिम युद्ध हुआ और रानी ने अपनी सेना का कुशल नेतृत्व किया। वे घायल हो गईं और अंततः उन्होंने वीरगति प्राप्त की।

6. चंद्रशेखर आजाद (Chandra Shekhar Azad)

भारत के स्वंतत्रतासंग्राम सेनानी

भारतीय स्वतंत्रता संग्रामके महानायक एवं लोकप्रिय स्वतंत्रता सेनानी (स्वतंत्रता सेनानियों के नाम) चंद्रशेखर आजादका जन्म 23 जुलाई, 1906 को मध्यप्रदेश के झाबुआ जिले के भाबरा नामक स्थान पर हुआ था | आजाद का जन्मस्थान भाबरा अब ‘आजादनगर’ के रूप में जाना जाता है। उनके पिता ईमानदार, स्वाभिमानी, साहसी और वचन के पक्के थे। यही गुण चंद्रशेखर को अपने पिता से विरासत में मिले थे।

1920-21 के वर्षों में वे गांधीजी के असहयोग आंदोलन से जुड़े। वे गिरफ्तार हुए और जज के समक्ष प्रस्तुत किए गए। जहां उन्होंने अपना नाम ‘आजाद’, पिता का नाम ‘स्वतंत्रता’ और ‘जेल’ को उनका निवास बताया।

उन्हें 15 कोड़ों की सजा दी गई। हर कोड़े के वार के साथ उन्होंने, ‘वंदे मातरम्’ ‘ का स्वर बुलंद किया। इसके बाद वे सार्वजनिक रूप से आजाद कहलाए। 

चंद्रशेखर आजाद कहते थे कि ‘दुश्मन की गोलियों का, हम सामना करेंगे, आजाद ही रहे हैं, आजाद ही रहेंगे’| जब देशवासी उन्हें आजाद के नाम से पुकारने लगे थे. धीरे धीरे उनकी ख्याति बढ़ने लगी थी.

भारत के स्वंतत्रतासंग्राम सेनानी

सन् 1922 में चौरी चौरा की घटना के बाद गांधीजी ने आंदोलन वापस ले लिया तो देश के कई नवयुवकों की तरह आज़ाद का भी कांग्रेस से मोहभंग हो गया. जब क्रांतिकारी आंदोलन उग्र हुआ, तब आजाद उस तरफ खिंचे और ‘हिन्दुस्तान सोशलिस्ट आर्मी’ से जुड़े। रामप्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में आजाद ने काकोरी षड्यंत्र (1925) में सक्रिय भाग लिया और पुलिस की आंखों में धूल झोंककर फरार हो गए।

17 दिसंबर, 1928 को (swatantrata senani in hindi) चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह और राजगुरु ने शाम के समय लाहौर में पुलिस अधीक्षक के दफ्तर को घेर लिया और ज्यों ही जे.पी. साण्डर्स अपने अंगरक्षक के साथ मोटर साइकिल पर बैठकर निकले तो राजगुरु ने पहली गोली दाग दी, जो साण्डर्स के माथे पर लग गई वह मोटरसाइकिल से नीचे गिर पड़ा। फिर भगत सिंह ने आगे बढ़कर 4-6 गोलियां दाग कर उसे बिल्कुल ठंडा कर दिया। चंद्रशेखर आजाद ने लाहौर में ब्रिटिश पुलिस ऑफिसर एसपी सॉन्डर्स को गोली मारकर लाला लाजपत राय की मौत का बदला लिया था|

लाहौर में जगह-जगह परचे चिपका दिए गए, जिन पर लिखा था- लाला लाजपतराय की मृत्यु का बदला ले लिया गया है। क्रांतिकारी एवं स्वतंत्रता सेनानी चंद्रशेखर आजाद 27 फरवरी 1931 को खुद को गोली मार ली थी. उन्होंने इलाहाबाद में ब्रिटिश पुलिस के साथ मुठभेड़ में गिरफ्तारी से बचने के लिए गोली मार ली थी. हालांकि उनकी मौत को लेकर कई बातें सामने आती रही हैं और उनकी मौत से भी पर्दा उठाया नहीं गया है |

7. नेताजी सुभाष चंद्र बोस (Netaji Subhash Chandra Bose)

भारत के स्वंतत्रतासंग्राम सेनानी

18 अगस्त 1945 के बाद का सुभाषचन्द्र बोस का जीवन और मृत्यु आज तक अनसुलझा रहस्य बना हुआ है। 18 अगस्त 1945 को उनके अतिभारित जापानी विमान दुर्घटनाग्रस्त हुआ था। यह दुर्घटना जापान अधिकृत फोर्मोसा (वर्तमान ताइवान) में हुई थी। उसमें नेताजी मृत्यु से सुरक्षित बच गये थे या नहीं, इसके बारे में कुछ भी स्पष्ट नहीं है।एक स्वतंत्रता सेनानी के बारे में सोचें जो एक वीर सैनिक, एक वीर योद्धा, एक महान सेनापति, कुशल राजनीतिज्ञ भी था , तो सबसे पहले हमारे सामने नेताजी सुभाष चंद्र बोस का चेहरा ही आता है। आजाद हिंद फौज के गठन से लेकर हर भारतीय को आजादी का महत्व बताने तक हर एक काम नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने किया।

23 जनवरी 1897 को उड़ीसा के कटक में एक संपन्न बंगाली परिवार में नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जन्म हुआ था। उनके पिता का नाम जानकीनाथ बोस और माता जी का नाम प्रभावती देवी था, जिनके कुल 14 बच्चे थे। इसमें से 8 बेटे और 6 बेटियां थी। अंग्रेजों के जमाने में किसी भारतीय का इस परीक्षा में पास होना तो दूर, इसमें भाग लेना तक कठिन होता था। इस सबके बावजूद नेताजी ने भारतीय प्रशासनिक सेवा की परीक्षा में चौथा स्थान प्राप्त किया। 1921 में भारत में राजनीतिक गतिविधियां बढ़ने लगीं।महात्मा गांधी उदार दल का नेतृत्व करते थे, तो वहीं सुभाष चंद्र बोस जोशीले क्रांतिकारी दल के प्रिय थे।

भारत के स्वंतत्रतासंग्राम सेनानी

1939 के कांग्रेस अधिवेशन में नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने गांधी जी के समर्थन से खड़े पट्टाभी सीतारमैया को हराकर विजय प्राप्त की। इस पर गांधी और बोस के बीच अनबन बढ़ गई, जिसके बाद नेताजी ने खुद ही कांग्रेस को छोड़ दिया। नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने साल 1937 में अपनी सेक्रेटरी और ऑस्ट्रियन युवती एमिली से शादी की।  सुभाष चंद्र बोस अपनी फौज के साथ 4 जुलाई 1944 को बर्मा (अब म्यांमार) पहुंचे। यहां उन्होंने नारा दिया ‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा।’ लेकिन 18 अगस्त 1945 को सुभाष चंद्र बोस ने हमेशा-हमेशा के लिए दुनिया क अलविदा कह दिया। तथ्य बताते हैं कि सुभाष चंद्र बोस 18 अगस्त 1945 को हवाई जहाज में सवार होकर मंचुरिया जा रहे थे, लेकिन इसके बाद वो अचानक कहीं लापता हो गए, और आज तक उनकी मौत एक अनसुलझी गुत्थी बनी हुई है।

अंग्रेजों से लोहा लेने की बात हो, अन्याय के विरुद्ध डटकर खड़े रहने की बात हो या फिर देश को गुलामी की जंजीरों से आजाद कराने की बात हो। 3 जनवरी 1897 को जन्मे नेताजी ने भारत के लिए जो कुछ भी किया, वो किसी को बताने की जरूरत नहीं है, बल्कि ये सब सुनहरे अक्षरों में इतिहास में दर्ज है। लेकिन आज भी जो बात धुंधली नजर आती है वो है नेताजी की मौत का रहस्य। लोग ये नहीं जान पाते कि आखिर सुभाष चंद्र बोस की हत्या हुई या फिर मौत? 

बोस

पिछले साल 2020 को सुभाष चंद्र बोस की रहस्यमयी मौत को लेकर स्थिति साफ होती नजर आई, क्योंकि सायक सेन नाम के एक व्यक्ति ने नेताजी की मौत को लेकर आरीटीआई दायर की और इसके जरिए उन्होंने उनकी मौत के बारे में जानने की कोशिश की। सायक की इस आरटीआई पर गृह मंत्रालय ने अपना जवाब भी दिया था, जिसमें बताया गया था कि उनकी मौत एक विमान हादसे में हुई थी। अपने जवाब में गृह मंत्रालय की तरफ से कहा गया था कि, एक विमान हादसे में नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मौत 18 अगस्त 1945 को हुई थी।

8. बाल गंगाधर तिलक (Bal Gangadhar Tilak)

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भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अग्रणी सिपाहियों में से एक लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के हैं | स्वराज मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है इस नारे को देने वाले बाल गंगाधर तिलक को लोग उनकी सेवाओं और कार्यों के लिए लोकमान्य कहते हैं| बाल गंगाधर का जन्म 23 जुलाई, 1856 को महाराष्ट्र के रत्नागिरी में हुआ था. उनका बचपन का नाम केशव बाल गंगाधर तिलक था|

उन्होंने डेक्कन कॉलेज से स्नातक की पढ़ाई पूरी की. उनका सार्वजनिक जीवन 1880 में एक शिक्षक और शिक्षक संस्था के संस्थापक के रूप में आरम्भ हुआ. इसके बाद ‘केसरी’ और ‘मराठा’ जैसे समाचार पत्र उनकी आवाज के पर्याय बन गए.

कांग्रेस की स्थापना के बाद पहली बार स्वराज का नारा बाल गंगाधर तिलक ने दिया ही था. कांग्रेस की स्थापना तो वर्ष 1885 में हो चुकी थी | वह स्वराज के पहले दावेदार थे. उनकी ही भांति बोस ने भी यह संकल्प अपनाया | लोकमान्य तिलक ने 20वीं शताब्दी के प्रारंभ में गणेश उत्सव मनाने की परंपरा शुरू की थी | 

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20वीं शताब्दी के प्रारंभ में गणेश उत्सव मनाने की परंपरा शुरू की थी | वर्ष 1890 में कांग्रेस में शामिल हुए तिलक की उनकी उदारवादी विचारधारा के लिए आलोचना होने लगी | वह वर्ष 1907 में कांग्रेस से अलग हुए, लेकिन दोबारा वर्ष 1916 में इसमें शामिल हो गए. इस बीच, उन्होंने मोहम्मद अली जिन्ना और एनी बेसेंट के साथ आल इंडिया होम रूल लीग का भी गठन किया|

तिलक ने भारतीय समाज में कई सुधार लाने के प्रयत्न किए. वे बाल-विवाह के विरुद्ध थे|  स्वराज हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है और हम इसे लेकर रहेंगे‘ का नारा देकर देश में स्वराज की अलख जगाने वाले बाल गंगाधर तिलक उदारवादी हिन्दुत्व के पैरोकार होने के बावजूद कट्टरपंथी माने जाने वाले लोगों के भी आदर्श थे| उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए महात्मा गांधी ने उन्हें आधुनिक भारत का निर्माता और नेहरू जी ने भारतीय क्रांति के जनक की उपाधि दी|  देश के इस महान नेता ने 01 अगस्त, 1920 को अपनी आखिरी सांसें लीं|

9. बिरसा मुंडा (Birsa Munda)

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बिरसा मुंडा एक आदिवासी नेता आदिवासियों के महानायक बिरसा मुंडा (essay on indian freedom fighters in hindi) का जन्म 15 नवंबर 1875 को झारखंड के आदिवासी दम्पति सुगना और करमी के घर हुआ था। उनकी माता का नाम करमी हातू और पिता का नाम सुगना मुंडा था। उस समय भारत में अंग्रेजी शासन था। आदिवासियों को अपने इलाकों में किसी भी प्रकार का दखल मंजूर नहीं था। यही कारण रहा है कि आदिवासी इलाके हमेशा स्वतंत्र रहे हैं। अंग्रेज़ भी शुरू में वहां जा नहीं पाए थे, लेकिन तमाम षड्यंत्रों के बाद वे आख़िर घुसपैठ करने में कामयाब हो गये।  भारतीय इतिहास में बिरसा मुंडा एक ऐसे नायक थे, जिन्होंने भारत के झारखंड में अपने क्रांतिकारी चिंतन से उन्नीसवीं शताब्दी में आदिवासी समाज की दशा और दिशा बदलकर नवीन सामाजिक और राजनीतिक युग का सूत्रपात किया।

बिरसा (Birsa Munda) पढ़ाई में बहुत होशियार थे इसलिए लोगों ने उनके पिता से उनका दाखिला जर्मन स्कूल में कराने को कहा। 1894 में बारिश न होने से छोटा नागपुर में भयंकर अकाल और महामारी फैली हुई थी। बिरसा ने पूरे समर्पण से अपने लोगों की सेवा की। अंग्रेजों ने ज़मींदारी व्यवस्था लागू कर आदिवासियों के वो गाँव, जहां वे सामूहिक खेती करते थे, ज़मींदारों और दलालों में बांटकर राजस्व की नयी व्यवस्था लागू कर दी। और फिर शुरू हुआ अंग्रेजों, जमींदार व महाजनों द्वारा भोले-भाले आदिवासियों का शोषण।

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1897 से 1900 के बीच मुंडाओं और अंग्रेज सिपाहियों के बीच युद्ध होते रहे और बिरसा और उसके चाहने वाले लोगों ने अंग्रेजों की नाक में दम कर रखा था।अगस्त 1897 में बिरसा और उसके चार सौ सिपाहियों ने तीर कमानों से लैस होकर खूँटी थाने पर धावा बोला। 1898 में तांगा नदी के किनारे मुंडाओं की भिड़ंत अंग्रेज सेनाओं से हुई जिसमें पहले तो अंग्रेजी सेना हार गयी लेकिन बाद में इसके बदले उस इलाके के बहुत से आदिवासी नेताओं की गिरफ़्तारियाँ हुईं।

जनवरी 1900 डोमबाड़ी पहाड़ी पर एक और संघर्ष हुआ था जिसमें बहुत से औरतें और बच्चे मारे गये थे। उस जगह बिरसा अपनी जनसभा को सम्बोधित कर रहे थे। बाद में बिरसा के कुछ शिष्यों की गिरफ़्तारियाँ भी हुईं।अन्त में स्वयं बिरसा भी 3 फरवरी 1900 को चक्रधरपुर में गिरफ़्तार कर लिये गये। बिरसा ने अपनी अन्तिम साँसें 9 जून 1900 को राँचीकारागार में लीं। आज भी बिहार, उड़ीसा, झारखंड, छत्तीसगढ और पश्चिम बंगाल के आदिवासी इलाकों में बिरसा मुण्डा को भगवान की तरह पूजा जाता है। धरती अबा का नाम हर किसी के होंठ पर था सदानी में एक लोक गीत ने दिखाया कि जाति हिंदुओं और मुस्लिमों की तर्ज पर पहला प्रभाव कटौती भी धर्म के नए सूर्य की ओर आते थे।

10. शिवराम राजगुरु (Shivaram Rajguru)

शहीद भगत सिंह का नाम कभी अकेले नहीं लिया जाता, (swatantrata senani essay in hindi) उनके साथ राजगुरु और सुखदेव का नाम भी बड़े सम्मान के साथ लिया जाता है। जी हां शिवराम हरि राजगुरु जो महाराष्ट्र के रहने वाले थे। राजगुरु का जन्म सन् 24 अगस्त 1908 में पुणे के पास खेड़ नामक गांव (वर्तमान में राजगुरु नगर) में देशाथा ब्राह्मण परिवार में हुआ था। मात्र 6 साल की अवस्था में इन्होंने अपने पिता को खो दिया था। पिता के निधन के बाद ये ये वाराणसी विद्या अध्ययन करने एवं संस्कृत सीखने आ गये थे। शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशां होगा |

चन्द्रशेखर आजाद से इतने अधिक प्रभावित हुए कि उनकी पार्टी हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी से तत्काल जुड़ गए, उस वक्त उनकी उम्र मात्र 16 साल थी। राजगुरु क्रांतिकारी तरीके से हथियारों के बल पर आजादी हासिल करना चाहते थे, उनके कई विचार महात्मा गांधी के विचारों से मेल नहीं खाते थे। चन्द्रशेखर आज़ाद, सरदार भगत सिंह और यतीन्द्रनाथ दास आदि क्रान्तिकारी इनके अभिन्न मित्र थे। राजगुरु एक अच्छे निशानेबाज भी थे।

क्रांतिकारी

17 दिसंबर, 1928 को चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह और राजगुरु ने शाम के समय लाहौर में पुलिस अधीक्षक के दफ्तर को घेर लिया और ज्यों ही जे.पी. साण्डर्स अपने अंगरक्षक के साथ मोटर साइकिल पर बैठकर निकले तो राजगुरु ने पहली गोली दाग दी| यह वारदात लाला लाजपत राय की मौत का बदला थी, जिनकी मौत साइमन कमीशन का विरोध करते वक्त हुई थी।पुणे के रास्ते में हुए गिरफ्तार पुलिस अधिकारी की हत्या के बाद राजगुरु नागपुर में जाकर छिप गये। इन्हें भगत सिंह और सुखदेव के साथ 23 मार्च 1931 को सूली पर लटका दिया गया। तीनों का दाह संस्कार पंजाब के फिरोज़पुर जिले में सतलज नदी के तट पर हुसैनवाला में किया गया।

11. सुखदेव थापर (Sukhdev Thapar)

सुखदेव थापर और भगत सिंह, दोनों ही ‘लाहौर नेशनल कॉलेज’ के छात्र थे। जन्म 15 मई, 1907 को गोपरा, लुधियाना, पंजाब में हुआ था। उनके पिता का नाम रामलाल थापर था, जो अपने व्यवसाय के कारण लायलपुर (वर्तमान फैसलाबाद, पाकिस्तान) में रहते थे। इनकी माता रल्ला देवी धार्मिक विचारों की महिला थीं। सुखदेव थापर सबसे चर्चित क्रांतिकारियों में से एक रहे हैं| सन 1919 में हुए जलियाँवाला बाग के भीषण नरसंहार के कारण देश में भय तथा उत्तेजना का वातावरण बन गया था। इस समय सुखदेव 12 वर्ष के थे।

स्कूलों तथा कालेजों में तैनात ब्रिटिश अधिकारियों को भारतीय छात्रों को ‘सैल्यूट’ करना पड़ता था। लेकिन सुखदेव ने दृढ़तापूर्वक ऐसा करने से मना कर दिया, जिस कारण उन्हें मार भी खानी पड़ी। लायलपुर के सनातन धर्म हाईस्कूल से मैट्रिक पास कर सुखदेव ने लाहौर के नेशनल कालेज में प्रवेश लिया।

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सुखदेव की भगत सिंह दोनों एक ही राह के पथिक थे, शीघ्र ही दोनों का परिचय गहरी दोस्ती में बदल गया। वे आर्य समाज से प्रभावित थे तथा समाज सेवा व देश भक्तिपूर्ण कार्यों में अग्रसर रहते थे।

सुखदेव के परम मित्र शिव वर्मा, जो प्यार में उन्हें ‘विलेजर’ कहते थे,( list of freedom fighters of india in hindi) के अनुसार भगत सिंह दल के राजनीतिक नेता थे और सुखदेव संगठनकर्ता, वे एक-एक ईंट रखकर इमारत खड़ी करने वाले थे। 23 मार्च 1931 को तीनों क्रांतिकारी हंसते-हंसते फांसी के फंदे पर झूल गए और देश के युवाओं के मन में आजादी पाने की नई ललक पैदा कर गए। शहादत के समय सुखदेव की उम्र मात्र 24 साल थी युवाओं के लिए ये आज भी एक प्रेरणा का स्त्रोत्र है.

12. डॉ भीमराव आंबेडकर (Dr. Bhimrao Ambedkar)

डॉ भीमराव (Dr. Bhimrao Ambedkar) आंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को महू (मिलिट्री हेडक्वार्टर ऑफ़ वॉर-रूम) छावनी हुआ था| आंबेडकर पाँच साल की उम्र से छावनी के प्राइमरी स्कूल में जाने लगे थे और उनके कई साल सतारा के हाई स्कूल में गुज़रे. बाद में उनके पिता सेना के साथ बम्बई आ गए, जहां उन्होंने अपने भाई के साथ एल्फिन्स्टन स्कूल में दाखिला लिया. एल्फिन्स्टन स्कूल से वे एल्फिन्स्टन कॉलेज में पहुंचे जहां उन्होंने अंग्रेज़ी और फ़ारसी में बी.ए. की डिग्री ली| 

वह संस्कृत भी पढ़ना चाहते थे| मगर अपनी जाति के कारण वह संस्कृत नहीं पढ़ पाए| 1913 में आंबेडकर न्यूयॉर्क स्थित कोलम्बिया विश्वविद्यालय गए| वहां उन्होंने 1915 में अर्थशास्त्र में स्नातकोत्तर की डिग्री हासिल की| इस डिग्री के लिए उन्होंने प्राचीन भारत में व्यापार पर शोधपत्र लिखा था| 1916 में कोलंबिया विश्वविद्यालय अमेरिका से ही उन्होंने पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की| नके पीएच.डी. शोध का विषय था ‘ब्रिटिश भारत में प्रातीय वित्त का विकेन्द्रीकरण’।

उन्‍होंने समता, समानता, बन्धुता एवं मानवता आधारित भारतीय संविधान को 02 वर्ष 11 महीने और 17 दिन के कठिन परिश्रम से तैयार कर 26 नवंबर 1949 को तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद को सौंप कर देश के समस्त नागरिकों को राष्ट्रीय एकता, अखंडता और व्यक्ति की गरिमा की जीवन पध्दति से भारतीय संस्कृति को अभिभूत किया।

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वर्ष 1955 में अपना ग्रंथ भाषाई राज्यों पर विचार प्रकाशित कर आन्ध्रप्रदेश, मध्यप्रदेश, बिहार, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र को छोटे-छोटे और प्रबंधन योग्य राज्यों में पुनर्गठित करने का प्रस्ताव दिया था, जो उसके 45 वर्षों बाद कुछ प्रदशों में साकार हुआ।

वायसराय की कौंसिल में श्रम मंत्री की हैसियत से श्रम कल्याण के लिए श्रमिकों की 12 घण्टे से घटाकर 8 घण्टे कार्य-समय, समान कार्य समान वेतन, प्रसूति अवकाश, संवैतनिक अवकाश, कर्मचारी राज्य बीमा योजना, स्वास्थ्य सुरक्षा, कर्मचारी भविष्य निधि अधिनियम 1952 बनाना, मजदूरों एवं कमजोर वर्ग के हितों के लिए तथा सीधे सत्ता में भागीदारी के लिए स्वतंत्र मजदूर पार्टी का गठन कर 1937 के मुम्बई प्रेसिडेंसी चुनाव में 17 में से उन्‍होंने 15 सीटें जीतीं।

भीमराव अम्बेडकर जी ने भारत से जाति सिस्टम ख़त्म करने के लिए बहुत कार्य किये. नीची जाति के होने की वजह से उनकी बुधिमियता को कोई नहीं मानता था. लेकिन इन्होंने फिर बुद्ध जाति अपना ली और दूसरी नीची जाती वालों को भी ऐसा करने को कहा| हमें सबके साथ सामान व्यव्हार करना चाहिए| 

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जनतांत्रिक भारत के संविधान को डॉ भीमराव अम्बेडकर ने ही लिखा था. उनकी सामाजिक-राजनीतिक चेतना और उग्र तेवर उनकी जाति और परिवार की पीड़ा का सीधा परिणाम थे. फिर भी, जाति व्यवस्था के खिलाफ़ उनकी बगावत को एक स्पष्ट दिशा देने वाली सबसे निर्णायक कारक थी उनकी विदेशी शिक्षा, जिसने उन्हें समतापरक मूल्यों से परिचित कराया और जाति की संरचना पर शोध करने का मौक़ा दिया|

भारत लौटने पर उन्होंने समाजशास्त्र के विश्लेषण के अपने उपकरणों को तराशा ताकि उस समाज व्यवस्था को चुनौती दे सकें जिसमें अस्पृश्य ही प्रथम पीड़ित थे| 1954-55 के समय अम्बेडकर जी अपनी सेहत से बहुत परेशान थे, उन्हें डायबटीज, आँखों में धुधलापन व कई तरह की अन्य बहुत सी बीमारियों ने घेर लिया था|

6 दिसम्बर 1956 को अपने घर दिल्ली में उन्होंने अंतिम सांस ली. उन्होंने अपने जीवन में बौध्य धर्म को मान लिया था, इसलिए उनका अंतिम संस्कार बौध्य धर्म की रीती अनुसार ही हुआ.

13. खुदीराम बोस (Khudiram Bose)

खुदीराम बोस का जन्म 3 दिसम्बर 1889 ई. को बंगाल में मिदनापुर जिले के हबीबपुर गाँव में त्रेलोक्य नाथ बोस के यह हुआ था | जब वह बहुत छोटे थे तब उनके माता-पिता का देहांत हो गया था| तब उनकी बहिन ने ही उनका लालन -पालन किया था| भारतीय स्वाधीनता के लिये मात्र 19 साल की उम्र में भारतवर्ष की स्वतन्त्रता के लिए फाँसी पर चढ़ गये। बालक खुदीराम के मन में देश को आजाद कराने की ऐसी लगन लगी कि नौवीं कक्षा के बाद ही पढ़ाई छोड़ दी और स्वदेशी आन्दोलन में कूद पड़े।

30 अप्रैल 1908 को ये दोनों नियोजित काम के लिये बाहर निकले और किंग्जफोर्ड के बँगले के बाहर घोड़ागाड़ी से उसके आने की राह देखने लगे।रात में साढ़े आठ बजे के आसपास क्लब से किंग्जफोर्ड की बग्घी के समान दिखने वाली गाडी आते हुए देखकर खुदीराम गाडी के पीछे भागने लगे। रास्ते में बहुत ही अँधेरा था। गाडी किंग्जफोर्ड के बँगले के सामने आते ही खुदीराम ने अँधेरे में ही आगे वाली बग्घी पर निशाना लगाकर जोर से बम फेंका। हिन्दुस्तान में इस पहले बम विस्फोट की आवाज उस रात तीन मील तक सुनाई दी दैवयोग से गाडियाँ एक जैसी होने के कारण दो यूरोपीय स्त्रियों को अपने प्राण गँवाने पड़े।

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खुदीराम तथा प्रफुल्लकुमार दोनों ही रातों-रात नंगे पैर भागते हुए गये और 24 मील दूर स्थित वैनी रेलवे स्टेशन पर जाकर ही विश्राम किया।अंग्रेज पुलिस उनके पीछे लग गयी और वैनी रेलवे स्टेशन पर उन्हें घेर लिया। अपने को पुलिस से घिरा देख प्रफुल्लकुमार चाकी ने खुद को गोली मारकर अपनी शहादत दे दी जबकि खुदीराम पकड़े गये। 11 अगस्त 1908 को उन्हें मुजफ्फरपुर जेल में फाँसी दे दी गयी। उस समय उनकी उम्र मात्र 18+ वर्ष थी।खुदीराम को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। इस गिरफ्तारी का अन्त निश्चित ही था।

अगस्त 1908 को भगवद्गीता हाथ में लेकर खुदीराम धैर्य के साथ खुशी-खुशी (5 freedom fighters in hindi) फाँसी चढ़ गये| क्रान्तिवीर खुदीराम बोस का स्मारक बनाने की योजना कानपुर के युवकों ने बनाई और उनके पीछे असंख्य युवक इस स्वतन्त्रता-यज्ञ में आत्मार्पण करने के लिये आगे आये। इस प्रकार के अनेक क्रान्तिकारियों के त्याग की कोई सीमा नहीं थी।

14. लाला लाजपत राय (Lala Lajpat rai)

भारतभूमि हमेशा से ही वीरों की जननी रही है| भारत के स्वतंत्रता संग्राम (swatantra senani in hindi) में ऐसे कई वीर हुए जिन्होंने देश को आजादी दिलाने में अपनी जान की भी परवाह नहीं की. ऐसे ही एक वीर थे शेर-ए-पंजाब लाला लाजपत राय|

28 जनवरी 1865 को पंजाब के मोगा जिले में लाला लाजपत राय का जन्म हुआ था| लाजपत राय के पिता जी वैश्य थे, किंतु उनकी माती जी सिक्ख परिवार से थी| लाला लाजपत राय भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक अहम सिपाही थे| देश के लिए उनकी निष्ठा और देशभक्ति के कारण वह हमारी यादों में सदैव अमर है| लाला लाजपत राय जी हमेशा ही देश को खुद से ऊपर मानते थे| 

1897 और 1899 में उन्होंने देश में आए अकाल में देश की तन, मन और धन से सेवा की. देश में आए भूकंप, अकाल के समय ब्रिटिश शासन ने कुछ नहीं किया. लाला जी ने स्थानीय लोगों के साथ मिलकर अनेक स्थानों पर अकाल में शिविर लगाकर लोगों की सेवा की| 

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अंग्रेजों ने जब 1905 में बंगाल का विभाजन कर दिया तो लालाजी ने सुरेंद्रनाथ बनर्जी और विपिनचंद्र पाल जैसे आंदोलनकारियों से हाथ मिला लिया और अंग्रेजों के इस फैसले की जमकर बगावत की. जब वह 1917 में अमेरिका के न्यूयार्क शहर गए और उन्होंने वहां इंडियन होम रूल लीग ऑफ अमेरिका नाम से एक संगठन की स्थापना की| 

1920 में जब वह भारत वापस आए तब तक वह एक नायक के रुप में उभर चुके थे. इसी साल कलकत्ता में कांग्रेस के एक विशेष सत्र में वह गांधी जी के संपर्क में आए और असहयोग आंदोलन का हिस्सा बन गए. (essay on freedom fighters in hindi language) लाला लाजपत राय, बालगंगाधर तिलक और विपिनचंद्र पाल को ‘लाल-बाल-पाल’ के नाम से जाना जाता है. 

3 फरवरी 1928 को जब साइमन कमीशन भारत पहुंचा (freedom fighters of india in hindi Wikipedia) तो उसके विरोध में पूरे देश में आग भड़क उठी. पूरे देश में जगह जगह इस कमीशन के खिलाफ आवाजें उठाई गई

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30 अक्टूबर, 1928 में लालाजी ने लाहौर में ‘साइमन कमीशन’ के विरुद्ध आन्दोलन का नेतृत्व किया और अंग्रेज़ों का दमन सहते हुए लाठी प्रहार से घायल हो गए. साइमन कमीशन’ के विरुद्ध आन्दोलन का नेतृत्व किया और अंग्रेज़ों का दमन सहते हुए लाठी प्रहार से घायल हो गए. इसी आघात के कारण 17 नवम्बर 1928 को उनका देहान्त हो गया. अपने अंतिम भाषण में उन्होंने कहा, ‘मेरे शरीर पर पड़ी एक-एक चोट ब्रिटिश साम्राज्य के कफन की कील बनेगी।’ और इस चोट ने कितने ही ऊधमसिंह और भगतसिंह तैयार कर दिए, जिनके प्रयत्नों से हमें आजादी मिली.

लाला जी को श्रद्धांजलि देते हुए महात्मा गांधी ने कहा था, “भारत के आकाश पर जब तक सूर्य का प्रकाश रहेगा, लालाजी जैसे व्यक्तियों की मृत्यु नहीं होगी. वे अमर रहेंगे.”

15. सरदार वल्लभ भाई पटेल (Sardar Vallabhbhai Patel)

भारत के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी (information on freedom fighters) सरदार वल्लभभाई पटेल का जन्म 31 अक्टूबर, 1875 को गुजरात के नाडियाड में उनके ननिहाल में हुआ| वह खेड़ा जिले के कारमसद में रहने वाले झावेर भाई पटेल की चौथी संतान थे| उनकी माता का नाम लाडबा पटेल था| सन्‌ 1908 में वे विलायत की अंतरिम परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास कर वे बैरिस्टर बन गए। फौजदारी वकालत में उन्होंने खूब यश और धाक जमाई। 

सरदार वल्लभभाई पटेल एक ऐसा नाम जो जब भी किसी बुजुर्ग जिसने स्वतंत्रता आन्दोलन को प्रत्यक्ष रूप से देखा था| भारत के प्रथम गृह मंत्री और प्रथम उप प्रधानमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल को लौह पुरुष का दर्जा प्राप्त था| उनके द्वारा किए गए साहसिक कार्यों की वजह से ही उन्हें लौह पुरुष और सरदार जैसे विशेषणों से नवाजा गया|

बिस्मार्क को जहां जर्मनी का ‘आयरन चांसलर’ कहा जाता है वहीं पटेल भारत के लौह पुरुष कहलाते हैं| 

1917 में मोहनदास करमचन्द गांधी के संपर्क में आने के बाद उन्होंने ब्रिटिश राज की नीतियों के विरोध में अहिंसक और नागरिक अवज्ञा आंदोलन के जरिए खेड़ा, बरसाड़ और बारदोली के किसानों को एकत्र किया| गुजरात के बारदोली ताल्लुका के लोगों ने उन्हें ‘सरदार’ नाम दिया और इस तरह वह सरदार वल्लभ भाई पटेल कहलाने लगे| भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में वह कई बार जेल के अंदर बाहर हुए|

1945-1946 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष पद के लिए भी पटेल एक प्रमुख उम्मीदवार थे| लेकिन गांधीजी के नेहरू प्रेम ने उन्हें अध्यक्ष नहीं बनने दिया| कई इतिहासकार यहां तक मानते हैं, कि यदि सरदार पटेल को प्रधानमंत्री बनने दिया गया होता तो चीन और पाकिस्तान के युद्ध में भारत को पूर्ण विजय मिलती परंतु गांधी के जगजाहिर नेहरू प्रेम ने उन्हें प्रधानमंत्री बनने से रोक दिया| भारत आजाद तो हो गया था पर उसे यह आजादी पाकिस्तान की कीमत पर मिली थी और उसके सामने चुनौती थी| सरदार वल्लभ भाई पटेल ने रियासतों के प्रति नीति को स्पष्ट करते हुए कहा कि ‘रियासतों को तीन विषयों

सुरक्षा, विदेश तथा संचार व्यवस्था के आधार पर भारतीय संघ में शामिल किया जाएगा.’

5 अगस्त, 1947 तक हैदराबाद, कश्मीर और जूनागढ़ को छोड़कर शेष भारतीय रियासतें ‘भारत संघ’ में सम्मिलित हो गईं| जूनागढ़ के नवाब के विरुद्ध जब बहुत विरोध हुआ (freedom fighters in hindi essay) तो वह भागकर पाकिस्तान चला गया और जूनागढ भी भारत में मिल गया|

पटेल कश्मीर को भी बिना शर्त भारत से जोड़ना चाहते थे पर नेहरू जी ने हस्तक्षेप कर कश्मीर को विशेष दर्जा दे दिया| नेहरू जी ने कश्मीर के मुद्दे को यह कहकर अपने पास रख लिया कि यह समस्या एक अंतरराष्ट्रीय समस्या है| अगर कश्मीर का निर्णय नेहरू की बजाय पटेल के हाथ में होता तो कश्मीर आज भारत के लिए समस्या नहीं बल्कि गौरव का विषय होता|

सरदार पटेल का निधन 15 दिसंबर, 1950 को मुंबई में हुआ था| आज हमारा समाज ऐसे ही लौह पुरुष की तलाश में है जो समाज में किसी भी कीमत पर एकता लाने में सफल हो|

16. सरोजनी नायडू (Sarojini Naidu)

नायडू का जन्म हैदराबाद भारत में 13 फरवरी 1879 में हुआ था. सरोजिनी के पिता का नाम अघोरनाथ चट्टोपध्याय था. वे एक वैज्ञानिक थे उन्होंने हैदराबाद में निज़ाम कॉलेज की स्थापना की थी | उनकी माता का नाम वरदा सुंदरी था| वे एक कवयित्री थीं और बंगाली भाषा में कविताएं लिखती थी. सरोजिनी नायडू उनके आठ भाई-बहनों में सबसे बड़ी थीं. सरोजिनी नायडू के एक भाई विरेंद्रनाथ क्रांतिकारी थे.

उन्होंने बहुत कम उम्र में ही अपने साहित्यिक ज्ञान का उपयोग करते हुए 1300 लाइंस की बहुत लम्बी इंग्लिश में कविता लिखी थी| जिसका शीर्षक था दी लेडी ऑफ़ दी लेक सरोजिनी के भावों को सुंदर शब्द देने की प्रतिभा को देखते हुए उनके पिता ने उन्हें इस दिशा में काफी प्रोत्साहित किया| 19 साल की उम्र खत्म करने के बाद सरोजिनी नायडू ने अपनी पसंद से 1889 मैं दूसरी कास्ट में शादी कर ली. उस समय अन्य जाति में शादी करना एक गुनाह से कम नहीं था. समाज की चिंता ना करते हुए उनके पिता ने अपनी बेटी की शादी को मान लिया. सभी विपरीत परिस्थितयों के बाद भी उनका वैवाहिक जीवन सफल रहा|

भारत के स्वंतत्रतासंग्राम सेनानी

1905 में वे बंगाल विभाजन के आंदोलन में शामिल हुई और तब वे इस कारण अपनी प्रतिबद्धता के लिए फंस गयी. 1915-1918 के दौरान उन्होंने भारत भर में सामाजिक कल्याण, महिला सशक्तिकरण मुक्ति और राष्ट्रवाद पर व्याख्यान दिया. जवाहरलाल नेहरू से प्रेरित होकर उन्होंने चंपारण में इंडिगो कर्मचारियों के लिए सहायता प्रदान करने का काम शुरू कर दिया|

1925 में नायडू को राष्ट्रीय कांग्रेस का अध्यक्ष नियुक्त किया गया, जिससे वे पद धारण करने वाली पहली भारतीय महिलाएं बन गईं. 1947 में देश के आजादी के बाद सरोजिनी जी को उत्तर प्रदेश का गवर्नर बनाया गया वे पहली महिला गवर्नर थी .9 मार्च 1949 को ऑफिस में काम करते हुए उन्हें हार्ट अटैक आया और वह इस दुनिया को छोड़ कर चल बसी|

17. बहादुर शाह जफ़र (bahadur shah zafar)

जफर का जन्म 24 अक्टुम्बर,1775 में हुआ था। उनके पिता अकबर शाह द्वितीय और मांता का नाम  लालबाई था। अपने पिता की मृत्यु के बाद जफर को 28 सितंबर, 1837 में मुगल बादशाह बनाया गया। 1857 में 10 मई को आजादी के जुनून से भरे हुए देसी सैनिक मेरठ से बगावत का बिगुल बजाते हुए 11 मई को दिल्ली पहुंचे तो भारत के 17वें और अंतिम मुगल बादशाह मिर्जा अबू जफर सिराजुद्दीन मोहम्मद बहादुर शाह जफर में विश्वास जताकर न सिर्फ उन्हें अपना नेता चुना बल्कि उनकी फिर से ताजपोशी की| 

जफर कम से कम दो मामलों में अपने पूर्ववर्ती मुगल सोलहों बादशाहों से अलग थे| (1857 के स्वतंत्रता सेनानी) एक तो वे शायरदिल थे और दूसरे उनकी दो-दो ताजपोशियां हुईं- पहली 29 सितंबर, 1837 को पिता अकबर द्वितीय के उत्तराधिकारी के रूप में और दूसरी 11 मई, 1857 को बागी सैनिकों द्वारा| 

अंग्रेज सेनानायक विलियम हडसन ने हुमायूं के ऐतिहासिक मकबरे में षडयंत्रपूर्वक जफर को गिरफ्तार किया तो अगले ही दिन दिल्ली गेट व खूनी दरवाजे के पास उनके दो बेटों मिर्जा मुगल व मिर्जा खिज्र सुल्तान और पोते मिर्जा अबूबक्र की हत्या कर दी थी| विजयी अंग्रेजों ने जफर के खिलाफ राजद्रोह व हत्याओं के आरोप लगाये और 27 जनवरी से 09 मार्च, 1858 तक मुकदमे के 40 दिन लंबे नाटक के बाद कहा कि गिरफ्तारी के समय दिए गए वचन के मुताबिक बर्मा निर्वासित करके उनकी जान बख्श दी जा रही है| 

भारत के स्वंतत्रतासंग्राम सेनानी

सवा अरब से ज्यादा लोगों का यह देश अपनी आजादी के इतने सालों बाद भी अपने आखिरी बादशाह की यह बदनसीबी नहीं दूर कर सका है! जफर ने दिल्ली में रहते अपने सुपुर्द-ए-खाक होने के लिए वही जगह चुन रखी थी. 2006 के अंत में मनमोहन के सरकारी निवास पर देश के नामचीन कलाकारों, समाजसेवियों, राजनेताओं व पत्रकारों आदि की बैठक में सर्वोदय नेता और सांसद निर्मला देशपांडे के इस आशय के सुझाव को सर्वसम्मति से स्वीकार किया गया था|

अंग्रेजों ने जफर के साथ जो सलूक किया, दुश्मन के तौर पर उन्हें वही करना ही चाहिए था, लेकिन अब हम वह नहीं कर रहे जो जफर के देश और वारिस के तौर पर करना चाहिए| लाहौर में उनके नाम पर सड़क है और बांग्लादेश में पुराने ढाका के विक्टोरिया पार्क का नामकरण उनके नाम पर कर दिया गया है. लेकिन हमारा भारत अभी भी उन्हें कू-ए-यार में दो गज जमीन का मोहताज बनाये हुए है.

आखिर उनकी बदनसीबी अभी और कितनी लंबी होगी? कब तक उन्हें इतने भर से संतुष्ट रहना होगा कि भारत, पाकिस्तान या बांग्लादेश के शासक या नेता म्यांमार जाते हैं तो उनकी कब्र पर अकीदत के फूल चढ़ाते हैं.

18. अशफ़ाकउल्ला खान (Ashfaq Ulla khan)

अशफ़ाक़ उल्ला खान का जन्म 22 अक्टूबर 1900 को उत्तरप्रदेश के शाहजहांपुर जिले के जलालनगर में हुआ था।इनका पूरा नाम अशफ़ाक़ उल्ला खान वारसी ‘हसरत’ था। इनका परिवार आर्थिक रूप से संपन्न था। इनके पिताजी का नाम मोहम्मद शफीक उल्ला खान था और इनकी माताजी का नाम मजहूर-उन-निसा था।बचपन से ही अशफ़ाक़ उल्ला खान को खेलने, घुड़सवारी, निशानेबाजी और तैरने का बहुत शौक था। बचपन से अशफ़ाक़ उल्ला खान में देश के प्रति कुछ करने का जज़्बा था।शफ़ाक उल्ला खां एक बेहतरीन कवि थे। 

वर्ष 1922 में असहयोग आन्दोलन के दौरान रामप्रसाद बिस्मिल ने शाहजहाँपुर में एक बैठक का आयोजन किया।अशफाक पर महात्मा गांधी का काफी प्रभाव था। लेकिन चौरी-चौरा कांड के बाद जब महात्मा गांधी ने अपना असयोग आंदोलन वापस ले लिया था, तब हजारों की संख्या में युवा खुद को धोखे का शिकार समझ रहे थे।अशफ़ाक उल्ला खान उन्हीं में से एक थे। 

उन्हें लगा अब जल्द से जल्द भारत को अंग्रेज़ों की गुलामी से मुक्ति मिलनी चाहिए।जब क्रांतिकारियों को यह लगने लगा कि अंग्रेजों से विनम्रता से बात करना या किसी भी प्रकार का आग्रह करना फ़िज़ूल है तो उन्होंने विस्फोटकों और गोलीबारी का प्रयोग करने की योजना बनाई।राम प्रसाद बिस्मिल ने अंग्रेज़ी सरकार के धन को लूटने का निश्चय किया। 

भारत के स्वंतत्रतासंग्राम सेनानी

9 अगस्त 1925 को (essay on freedom fighters in hindi) रामप्रसाद बिस्मिल, चंद्रशेखर आजाद, अशफाक उल्ला खान, राजेंद्र लाहिडी, ठाकुर रोशन सिंह, सचिंद्र बख्शी, केशव चक्रवर्ती, बनवारी लाल मुकुंद और मन्मथ नाथ गुप्त ने लखनऊ के नजदीक काकोरी में ट्रेन में ले जाए जा रहे सरकारी खजाने को लूट लिया। इस घटना से ब्रिटिश हुकूमत तिलमिला उठी। क्रांतिकारियों की तलाश में जगह−जगह छापे मारे जाने लगे। एक−एक कर काकोरी कांड में शामिल सभी क्रांतिकारी पकड़े गए लेकिन चंद्रशेखर आज़ाद और अशफाक उल्ला खान हाथ नहीं आए। इतिहास में यह घटना काकोरी कांड (bhartiya swatantrata senani in hindi) के रूप में दर्ज हुई।

19 दिसंबर, 1927 को एक ही दिन एक ही समय लेकिन अलग-अलग जेलों (फैजाबाद और गोरखपुर) में दोनों दोस्तों, राम प्रसाद बिस्मिल और अशफ़ाक उल्ला खान को फांसी दे दी गई। मरते दम तक दोनों ने अपनी दोस्ती की एक बेहतरीन मिसाल कायम की और एक साथ इस दुनिया को अलविदा कह दिया।

19. डॉ.राजेंद्र प्रसाद (Dr. Rajendra Prasad)

डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद उनका जन्म 03 दिसंबर 1884 के दिन बंगाल प्रेसीडेंसी में जरादेई में हुआ था | राजेंद्र प्रसाद के तीन बेटे थे| राजेंद्र प्रसाद देश के पहले राष्ट्रपति थे. (five freedom fighters in hindi) आजादी की लड़ाई में उतरने से वो बिहार के शीर्ष वकीलों में थे, पटना में बड़ा घर था, नौकर चाकर थे, उस जमाने में उनकी फीस भी कम नहीं थी|

गांधीजी के अनुरोध पर वो आजादी की लड़ाई में कूदे, फिर ताजिंदगी साधारण तरीके से जीते रहे| राजेंद्र प्रसाद ने कई मिसालें देश के सामने रखी थीं, राजेंद्र प्रसाद जब तक पद पर रहे| डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद जब तक पद पर रहे, तब तक उन्होंने कोशिश की, कि उनका परिवार साधारण जिंदगी ही जिए |राजेंद्र प्रसाद ने राष्ट्रपति रहते हुए कभी धन नहीं जोड़ा|

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उन्हें राष्ट्रपति के रूप में जितना वेतन मिलता था, उसका आधा वो राष्ट्रीय कोष में दान कर देते थे. राजेंद्र प्रसाद के परिवार तथा किसी भी रिश्तेदार ने उनके पद का लाभ नहीं उठाया. वह खुद नहीं चाहते थे कि उनका कोई नजदीकी रिश्तेदार राष्ट्रपति पद की गरिमा पर कोई आंच आने दे. डॉ. राजेन्द्र प्रसाद की दो पोतियां हैं| एक पोती जमशेदपुर और दूसरी रांची में रहती हैं. एक अन्य पोती पटना में रहती हैं| वो सभी आमतौर पर प्रचार से दूर रहती हैं. वह पटना के सदाकत आश्रम में रहते थे| वहां ढंग से इलाज की व्यवस्था भी नहीं थी| 

एक राष्ट्रपति की आखिरी दिनों में ये हालत होगी, सोचा भी नहीं जा सकता| अगर वह चाहते तो एक वकील के रूप में अच्छा खासा कमा सकते थे| लेकिन वह वर्ष 1910 के आसपास पटना के जाने माने वकील बन चुके थे| अपनी सत्यनिष्ठा, कर्तव्यपरायणता और वकालत के अपने अकूत ज्ञान के लिए विख्यात थे. 28 फरवरी 1963 के दिन पटना में जब राजेंद्र प्रसाद नव अंतिम सांस ली तो उनकी उम्र 78 वर्ष थी| इसके कुछ समय बाद ही उनकी पत्नी राजवंशी देवी की मृत्यु इससे कुछ समय पहले ही 1962 में हो गई थी |

20. दुर्गावती देवी (दुर्गा भाभी) (Durgawati Devi)

दुर्गा भाभी भारत के स्वतंत्रता संग्राम में क्रान्तिकारियों की प्रमुख सहयोगी थीं। वह  क्रांतिकारी भगवती चरण बोहरा की धर्मपत्नी थीं। दुर्गा भाभी का जन्म 7 अक्टुम्बर 1902 को शहजादपुर ग्राम कौशाम्बी जिला में पंडित बांके बिहारी के यहां हुआ। इनके पिता इलाहाबाद कलेक्ट्रेट में नाजिर थे| और इनके बाबा महेश प्रसाद भट्ट जालौन जिला में थानेदार के पद पर तैनात थे।

भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव को छुड़ाने के लिए दुर्गा भाभी (Durgawati Devi) जी-जान से जुटी रहीं। इसके लिए वह महात्मा गाँधी से भी मिलीं, और कहा कि भगत सिंह एवं उनके साथियों को छुड़ाने के लिए वायसराय से कहें। 18 दिसम्बर, 1928 को लाहौर में भगत सिंह (Bhagat Singh), सुखदेव व राजगुरु ने गोली मारकर सांडर्स की हत्या कर दी। (stories of freedom fighters in hindi) दुर्गा भाभी (Durgawati Devi) भी लाहौर आकर एक गली में छोटे से मकान में रहने लगीं उन्हें लाला जी की मृत्यु एवं क्रांतिकारियों का पता था। 

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भगत सिंह अंग्रेजी लिबास में सिर पर फ्लैट हैट लगाकर तथा दुर्गा भाभी पश्चिमी वेष-भूषा पहनकर पुत्र शचीन्द्र के साथ लाहौर से कोलकाता जाने वाली रेलगाड़ी के प्रथम डिब्बे में बैठ गए। गत सिंह व दुर्गा भाभी (Durgawati Devi) ने पति-पत्नी की भूमिका निभाई व राजगुरु ने मैले-कुचेले कपड़े पहन कर सामान सम्भालते हुए नौकर की भूमिका अदा की। भगवती चरण बोहरा ने स्टेशन पर दुर्गा भाभी को देखते ही कहा ‘दुर्गा वास्तव में हमारा विवाह तो आज ही हुआ है एक पत्नी की जिम्मेदारी का पूर्ण निर्वाह किया।’ दुर्गा भाभी ने कहा कि विवाह तो बहुत पहले हो चुका, वह क्या था ? 

भगवती चरण ने कहा वह तो गुड्डे-गुड़िया का खेल था। इस प्रकार भगत सिंह (Bhagat Singh) दुर्गा भाभी के साथ सुरक्षित कलकत्ता सुशीला दीदी के यहाँ पहुँच गए। दिल्ली में बम बनाने की एक फैक्ट्री लगाई गई जिसमें भगवती चरण बोहरा, दुर्गा भाभी (Durgawati Devi) व अन्य क्रान्तिकारी बम बनाना सीख रहे थे। फैक्ट्री के बाहर बोर्ड पर साबुन बनाने की फैक्ट्री लिखा हुआ था। 

भारत के स्वंतत्रतासंग्राम सेनानी

दुर्गा भाभी (Durgawati Devi) पहले ही लाहौर आकर अपने मकान में रहने लगीं। बम का परीक्षण रावी नदी के किनारे होना था। चन्द्र शेखर आजाद ने दुर्गा देवी को अपनी माँ मानकर तथा बच्चे शचीन्द्र को भाई मानकर उनका पूर्ण दायित्व अपने ऊपर लिया। जब तक आजाद जिये उन्होंने दुर्गा देवी के सामने कभी भी पैसे का अभाव नहीं आने दिया। भगवती चरण बोहरा की मृत्यु के बाद जो सम्मान क्रांतिकारियों ने दुर्गा भाभी को दिया वह इतिहास में अविस्मरणीय है। राजगुरु,भगत सिंह (Bhagat Singh), सुखदेव को छुड़ाने के लिए दुर्गा भाभी (Durgawati Devi) जी-जान से जुटी रहीं। 

भगत सिंह को जेल से छुड़ाने के चक्कर में उनका पति शहीद हो गया और दुर्गा भाभी स्वयं विधवा हो गईं, उन्हें  (भगत सिंह) को छुड़ाने के सारे प्रयत्न विफल हो गए। सुखदेव ,भगत सिंह, राजगुरु को लाहौर में फाँसी दे दी गई। यह सूचना दुर्गा भाभी को बम्बई में मिली जब वह एक क्रांतिकारी मिशन के लिए बम्बई गई हुई थीं। क्रान्तिकारी दल के सदस्य या तो आजन्म कारावास काट रहे थे या शहीद हो गए थे। ऐसे में दुर्गा भाभी (Durgawati Devi) अकेली पड़ गईं। 1940 में लखनऊ आकर उन्होंने एक छोटे से विद्यालय का श्रीगणेश किया और बच्चों को पढ़ाने लगीं सन् 1998 को उनकी मृत्यु हो गई।

निष्कर्ष (भारत के स्वंतत्रतासंग्राम सेनानी)

आपने भारत के स्वतंत्रता सेनानियों के नाम, जानकारी विस्तार से पढ़ा। इसके अलावा बेगम हजरत महल, गणेश विद्धार्थी, जय प्रकाश नारायण, बटुकेश्वर दत्त, रवीन्द्रनाथ टैगोर, विपिनचंद्र पाल, नाना साहब, चिरंजन दास, राजा राममोहन राय ने देश के स्वतंत्रता संग्राम में प्रमुख भूमिका निभाई। भारत में स्वतंत्रता संग्राम का एक  विशाल इतिहास है | और साइमन कमीशन, रोलेट एक्ट , जलिया वाला बैग नरसंहार और कई सारे आन्दोलन सहित कई कार्यक्रम हुए | जिन्होंने भारत को स्वतंत्रता प्राप्त करने में सहायता की|  इनके जीवन से हम बहुत कुछ सीख कर अपने जीवन में उतार सकते है | आज भी भारत को ऐसे ही क्रन्तिकारीयों की जरुरत है, जो देश को भ्रष्टाचार, गरीबी से आजाद कराये |

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    […] PBD Exhibition on the theme ‘Azadi Ka Amrit Mahotsav– Contribution of Diaspora in Indian Freedom […]

    1 year ago

    nice post

    […] भारत के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी | Freedo… […]

    1 year ago

    […] भारत की आजादी के इतिहास में अमर शहीद भगत सिंह का नाम स्वर्ण अक्षरों में लिखा गया है। भगतसिंह का जन्म 28 सितम्बर, 1907 को पंजाब के जिला लायलपुर (Lyallpur district) में बंगा गांव (जो अब पाकिस्तान में है) में हुआ था। भगतसिंह के पिता का नाम सरदार किशन सिंह और माता का नाम सरदारनी विद्यावती कौर (Sardarni Vidyavati Kaur) था। Fruits

    1 year ago

    Bharat ke vikas ke liye bahut achi information …itihas ki baat Vegetable
    Thanks

    […] भारत की आजादी के इतिहास में अमर शहीद भगत सिंह का नाम स्वर्ण अक्षरों में लिखा गया है। भगतसिंह का जन्म 28 सितम्बर, 1907 को पंजाब के जिला लायलपुर (Lyallpur district) में बंगा गांव (जो अब पाकिस्तान में है) में हुआ था। भगतसिंह के पिता का नाम सरदार किशन सिंह और माता का नाम सरदारनी विद्यावती कौर (Sardarni Vidyavati Kaur) था। उनके पिता और उनके दो चाचा अजीत सिंह तथा स्वर्ण सिंह भी अंग्रेजों के खिलाफ आजादी की लड़ाई का एक हिस्सा थे। जिस समय भगत सिंह का जन्म हुआ उस समय ही उनके पिता एवं चाचा को जेल से रिहा किया गया था। भगतसिंह की दादी ने बच्चे का नाम भागां वाला (अच्छे भाग्य वाला) रखा। बाद में उन्हें भगतसिंह कहा जाने लगा। एक देशभक्त परिवार में जन्म लेने की वजह से ही भगतसिंह को देशभक्ति का पाठ विरासत के तौर पर मिला। […]

    2 years ago

    informative article, thanks for this

    […] और राष्ट्रीय गीत का पालन करें। वीर सैनिकों को परमवीर चक्र, अशोक चक्र और वीर चक्र […]

    chirag sharma
    2 years ago

    not everyone knows about freedom fighters and there are still hundreds of unknown fighters whose name is not listed, but thank you for sharing this information so that atleast we have known some of them. jai hind

    […] day is a very auspicious day for Indians who will get an opportunity to pay tribute to all the freedom fighters? Since it is a national holiday, all regional level, state level and national level government […]

    […] निभाई थी। उनके बाद देश भर में कई स्वतंत्रता सेनानियों ने उनका अनुसरण किया। आजादी के बाद, […]

    […] under the guidance of Gandhi, became a leader in India’s freedom struggle in 1947. He laid the foundation of independent India as a sovereign, socialist, secular, […]

    […] और एक महा वाक्या। शंकराचार्य sankarachariyar ने भारत में सभी सन्यासियों को दस मुख्य समूहों […]

    […] कर सकते हैं। इस मंच का मुख्य उद्देश्य स्वतंत्र कलाकारों का मुद्रीकरण करना […]

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