कारगिल विजय दिवस पर निबंध इतिहास कहानी
कारगिल विजय दिवस – कारगिल की ऊंची चोटियों को पाकिस्तान के कब्जे से आजाद करवाते हुए बलिदान देने वाले देश के वीर सपूतों की याद में हर साल कारगील विजय दिवस 26 जुलाई मनाया जाता है। Kargil Vijay Diwas हर साल 26 जुलाई को 1999 में कारगिल युद्ध में पाकिस्तान (Pakistan) पर भारत (India) की जीत के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। इस कार्य के लिए भारतीय सेना द्वारा ‘ऑपरेशन विजय’ प्रारंभ किया गया था और ‘ऑपरेशन विजय’ की सफलता के बाद इसे ‘कारगिल विजय दिवस’ का नाम दिया गया। युद्ध के दौरान, भारतीय सेना (Indian Army) ने पाकिस्तानी घुसपैठियों को खदेड़ दिया और “ऑपरेशन विजय” (Operation Vijay) के हिस्से के रूप में टाइगर हिल (Tiger Hills) और अन्य चौकियों पर कब्जा करने में सफल रही।
लद्दाख (Ladakh) के कारगिल में 60 दिनों से अधिक समय तक पाकिस्तानी सेना (Pakistani Army) के साथ लड़ाई जारी रही और अंत में भारत को इस युद्ध में जीत हासिल हुई। हर साल, इस दिन हम पाकिस्तान द्वारा शुरू किए गए युद्ध में शहीद हुए सैकड़ों भारतीय सैनिकों को श्रद्धांजलि देते हैं। भारतीय सशस्त्र बलों के योगदान को याद करते हुए देशभर में कई कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं।
ऐसा माना जाता है कि पाकिस्तान 1998 की शरद ऋतु में ही ऑपरेशन की योजना बना रहा था। भारतीय सेना 30 जून, 1999 तक विवादित कश्मीर क्षेत्र में सीमा पर पाकिस्तानी चौकियों के खिलाफ एक बड़े ऊंचाई वाले हमले के लिए तैयार थी। छह हफ्तों की अवधि में, भारत ने कश्मीर में 5 पैदल सेना डिवीजनों, 5 स्वतंत्र ब्रिगेड और अर्धसैनिक बलों की 44 बटालियनों को स्थानांतरित किया था। ऐसा कहा जाता है कि घुसपैठ की योजना पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल परवेज मुशर्रफ और जनरल स्टाफ के प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल मोहम्मद अजीज के दिमाग की उपज थी।
कारगिल लड़ाई क्षेत्र [Kargil war location]
सन 1947 में हिंदुस्तान के बंटवारे से पहले, कारगिल लद्दाख जिले के बल्तिस्तान का हिस्सा था। यह क्षेत्र विभिन्न भाषाओँ को बोलने वाले और विभिन्न धर्मों के लोगों से आबाद हैं, जो यहाँ विश्व के सबसे ऊँचे पहाड़ों के बीच घाटियों में निवास करते हैं। सन 1947 – 1948 में हुए प्रथम कश्मीर युद्ध ने बल्तिस्तान जिले को 2 भागों में बाँट दिया, अब कारगिल इसका भाग नहीं, अपितु एक पृथक जिला बन गया था। कारगिल जिला भारत के जम्मू और कश्मीर राज्य के लद्दाख सब – डिविज़न में आता हैं। सन 1971 के भारत – पाक युद्ध में पाकिस्तान की हार हुई और इसके बाद दोनों देशों ने शिमला समझौते पर हस्ताक्षर किये, जिसके अनुसार अब दोनों देशों ने सीमाओं के संबंध में टकराव करने से इंकार किया।
कारगिल (Kargil) –
यह क्षेत्र श्रीनगर से 205 कि.मी. [127 मील] की दूरी पर स्थित हैं। यह LOC के उत्तर दिशा की ओर हैं। कारगिल में भी तापमान हिमालय के अन्य क्षेत्रों की तरह ही होता हैं। गर्मियों के मौसम में भी ठण्ड होती हैं और रातें बर्फीली होती हैं। सर्दियों में तापमान और भी ठंडा हो जाता हैं और अक्सर -48 डिग्री सेल्सिअस तक गिर जाता हैं।
कारगिल पाकिस्तान के स्कार्दू नामक टाउन से मात्र 173 कि।मी। की दूरी पर ही स्थित हैं और इसी कारण पाकिस्तान अपने सैनिक दलों को सूचनाएं और गोला – बारूद और तोपें मुहैया कराने में सक्षम रहता है।
कारगिल टकराव के दिन [Kargil Conflict Events & War Progress]
(Kargil)कारगिल युद्ध की 3 प्रमुख अवस्थाएँ रहीं, जिनका विवरण निम्नानुसार हैं –
- सबसे पहले पाकिस्तान ने भारत अधिगृहित कश्मीरी क्षेत्र [ Indian – Controlled section of Kashmir ] में अपनी सेना की घुसपैठ शुरू की और अपनी तोपों की रेंज में आने वाले नेशनल हाइवे 1 [ NH1 ] की ओर के स्थानों पर रणनीति पूर्वक कब्ज़ा किया।
- दुसरे चरण में भारत ने इस घुसपैठ का पता लगाया और भारतीय सेना को इसका जवाब देने के लिए उन स्थानों पर भेजा।
- अंतिम चरण में भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध शुरू हो गया और इसका नतीजा ये हुआ कि भारत ने उन सभी स्थानों पर विजय प्राप्त की, जहाँ पाकिस्तान ने कब्ज़ा कर लिया था और अंतर्राष्ट्रीय दबाव के चलते पाकिस्तानी हुकुमत ने अपनी फ़ौज को लाइन ऑफ़ कंट्रोल से पीछे हटा लिया।
भारतीय सेना ने घुसपैठियों का पता लगाया
8-15 मई, 1999 की अवधि के दौरान कारगिल पर्वतमाला के ऊपर भारतीय सेना के गश्ती दल द्वारा घुसपैठियों का पता लगाया गया। कारगिल और द्रास के सामान्य इलाकों में, पाकिस्तान ने सीमा पार से तोपों से गोलीबारी का सहारा लिया। भारतीय सेना द्वारा कुछ ऑपरेशन शुरू किए गए जो द्रास सेक्टर में घुसपैठियों को काटने में सफल रहे। साथ ही बटालिक सेक्टर में घुसपैठियों को पीछे धकेल दिया गया। ऊंचाई पर, घुसपैठिए दोनों पेशेवर सैनिक और भाड़े के सैनिक थे, जिनमें पाकिस्तान सेना की नॉर्दर्न लाइट इन्फैंट्री (एनएलआई) की तीसरी, चौथी, 5वीं, 6वीं और 12वीं बटालियन शामिल थीं। इनमें पाकिस्तान के विशेष सेवा समूह (एसएसजी) के सदस्य और कई मुजाहिद्दीन भी शामिल थे।
प्रारंभ में, यह अनुमान लगाया गया था कि लगभग 500 से 1000 घुसपैठिए वहां ऊंचाई पर कब्जा कर रहे थे, लेकिन बाद में यह अनुमान लगाया गया कि वास्तविक ताकत लगभग 5000 रही होगी। घुसपैठ का क्षेत्र 160 किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ था। पाकिस्तानी घुसपैठिए एके 47 और 56 मोर्टार, आर्टिलरी, एंटी–एयरक्राफ्ट गन और स्टिंगर मिसाइलों से लैस थे।
कारगिल में भारतीय सेना के अभियान
घुसपैठ का पता भारतीय सेना ने 3 मई-12 मई के बीच लगाया था। और 15 मई-25 मई, 1999 से, सैन्य अभियानों की योजना बनाई गई, उनके हमले के स्थानों पर सैनिकों को भेजा गया, तोप और अन्य हथियार भी भेजे गए और आवश्यक हथियार भी खरीदे गए। मई 1999 में, भारतीय सेना द्वारा “ऑपरेशन विजय‘ नाम से एक ऑपरेशन शुरू किया गया था। जिसके बाद भारतीय सैनिक विमानों और हेलीकॉप्टरों द्वारा दिए गए हवाई कवर के साथ कब्जे वाले पाकिस्तानी ठिकानों की ओर बढ़ गई।
1999 का भारतीय सेना का ऑपरेशन विजय नॉर्दर्न लाइट इन्फैंट्री (एनएलआई) के नियमित पाकिस्तानी सैनिकों को बेदखल करने के लिए एक संयुक्त इन्फैंट्री–आर्टिलरी प्रयास था, जिन्होंने नियंत्रण रेखा के पार भारतीय क्षेत्र में घुसपैठ की थी और उच्च–ऊंचाई और राइडलाइन्स पर अनियंत्रित पर्वत चोटियों पर कब्जा कर लिया था। जल्द ही यह स्पष्ट हो गया कि केवल विशाल और सतत गोलाबारी ही घुसपैठियों के संगरों को नष्ट कर सकती है।
हवाई अभियान
11 मई से 25 मई तक वायु सेना द्वारा जमीनी सैनिकों को सपोर्ट किया गया और खतरे को नियंत्रित करने, दुश्मन के स्वभाव की स्थिति का पता करने और कई प्रारंभिक कार्रवाइयों को अंजाम देने की कोशिश की गई। 26 मई को लड़ाकू कार्रवाई में वायु सेना के प्रवेश से संघर्ष में बदलाव लाया। क्या आप जानते हैं कि वायु सेना के ऑपरेशन सफेद सागर में, वायु सेना ने लगभग 50-दिनों के संचालन में सभी प्रकार की लगभग 5000 उड़ानें भरीं? कारगिल से पहले पश्चिमी वायु कमान ने तीन सप्ताह तक चलने वाला त्रिशूल अभ्यास किया था। त्रिशूल के दौरान, भारतीय वायु सेना ने लगभग 35000 कर्मियों का उपयोग करते हुए 300 विमानों के साथ 5000 उड़ानें भरीं और हिमालय में उच्च ऊंचाई पर लक्ष्य बनाए।
कंधे से दागी जाने वाली मिसाइलों का खतरा बड़ा था। पाकिस्तानी स्टिंगर ने एलओसी के पार से आईएएफ के कैनबरा रेकी विमान को क्षतिग्रस्त कर दिया। ऑपरेशन के दूसरे और तीसरे दिन, IAF ने एक मिग-21 लड़ाकू और एक एमआई-17 हेलीकॉप्टर खो दिया। इसके अलावा, एक मिग-27 दूसरे दिन इंजन की विफलता के कारण खो गया था। कारगिल के सबसे नजदीक श्रीनगर, अवंतीपुर और जालंधर के पास आदमपुर से भारतीय हवाई क्षेत्र थे। इसलिए, IAF ने इन तीन ठिकानों से संचालन किया। जमीनी हमले के लिए इस्तेमाल किए गए विमानों में मिग -2 आई, मिग -23, मिग -27, जगुआर और मिराज -2000 शामिल थे। ऑपरेशन विजय में अनुमान है कि अकेले हवाई कार्रवाई से लगभग 700 घुसपैठिए मारे गए।
नौसेना संचालन
जैसे ही भारतीय वायु सेना और सेना ने कारगिल की ऊंचाइयों पर लड़ाई के लिए खुद को तैयार किया, भारतीय नौसेना ने अपनी योजना तैयार करनी शुरू कर दी। 20 मई से, भारतीय नौसेना को भारतीय जवाबी हमले के शुरू होने से कुछ दिन पहले, पूर्ण अलर्ट पर रखा गया था। नौसेना और तटरक्षक विमानों को अंतहीन निगरानी में रखा गया था और इसलिए ये समुद्र में किसी भी चुनौती का सामना करने के लिए तैयार थीं। रक्षात्मक मूड में, पाकिस्तानी नौसेना ने अपनी सभी इकाइयों को भारतीय नौसेना के जहाजों से दूर रहने का निर्देश दिया। ‘ऑपरेशन तलवार‘ के तहत ‘ईस्टर्न फ्लीट‘ ‘वेस्टर्न नेवल फ्लीट‘ में शामिल हो गया और पाकिस्तान के अरब सागर के रास्ते बंद कर दिए।
भारतीय नौसेना द्वारा बनाई गई नाकाबंदी इतनी शक्तिशाली थी कि पूर्व प्रधान मंत्री नवाज शरीफ ने खुलासा किया कि अगर एक पूर्ण युद्ध छिड़ गया तो पाकिस्तान के पास खुद को बनाए रखने के लिए केवल छह दिनों का ईंधन (पीओएल) बचा था। इस तरह भारतीय नौसेना ने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और कारगिल युद्ध के दौरान भारतीय सेना और वायु सेना की मदद की।
कारगिल के इन वीरों को सलाम
इस युद्ध में शामिल होने वाला हर जवान हमारे लिए प्रेरणास्रोत है मगर कुछ जवानों ने ऐसा पराक्रम दिखाया है जिसको याद कर आज भी सेना गर्व महसूस करती है।
कैप्टन विक्रम बत्रा
कैप्टन विक्रम बत्रा वही हैं, जिन्होंने कारगिल के प्वांइट 4875 पर तिरंगा फहराते हुए कहा था “यह दिल मांगे मोर।” विक्रम 13वीं जम्मू एंड कश्मीर राइफल्स में थे। विक्रम तोलोलिंग पर पाकिस्तानियों द्वारा बनाए गए बंकर पर न केवल कब्जा किया बल्कि गोलियों की परवाह किए बिना ही अपने सैनिकों को बचाने के लिए 7 जुलाई 1999 को पाकिस्तानी सैनिकों को सीधे भिड़ गए। आज उस चोटी को बत्रा टॉप से जाना जाता है। सरकार ने उन्हें परमवीर चक्र देकर सम्मानित किया।
कैप्टन मनोज कुमार पांडे
शहीद मनोज गोरखा राइफल्स के फर्स्ट बटालियन में थे। वह ऑपरेशन विजय के महानायक थे। उन्होंने 11 जून को बटालिक सेक्टर में दुश्मनों के दांत खट्टे कर दिए थे। वहीं उनके ही नेतृत्व में सेना की टुकड़ी ने जॉबर टॉप और खालुबर टॉप पर सेना ने वापस कब्जा किया था। पांडेय ने अपनी चोटों की परवाह किए बिना तिरंगा लहराया और परमवीर चक्र से सम्मानित किए गए।
राइफल मैन संजय कुमार
शहीद संजय 13 जम्मू और कश्मीर राइफल्स में थे। वह स्काउट टीम के लीडर थे और उन्होंने फ्लैट टॉप को अपनी छोटी टुकड़ी के साथ कब्जा किया। वह एक जाबांज योद्धा थे उन्होंने दुश्मनों की गोली सीने पर खाई थी। गोली लगने के बाद भी वह दुश्मनों से लड़ते रहे और उन्होंने अदम्य साहस का परिचय दिया।
मेजर पदमपानी आचार्य
शहीद आचार्य राजपूताना राइफल्स की बटालियन में थे। 28 जून 1999 को लोन हिल्स पर दुश्मनों के हाथों वीरगति को प्राप्त हो गए थे। सरकार ने कारगिल हिल पर उनकी वीरता के लिए मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्मानित किया था।
कैप्टन अनुज नैय्यर
शहीद अनुज जाट रेजिमेंट की 17वीं बटालियन में थे। 7 जुलाई 1999 को वह टाइगर हिल पर दुश्मनों से लड़े। कैप्टन अनुज की वीरता को सरकार ने मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्मानित किया गया।
कैप्टन एन केंगुर्सू
शहीद केंगुर्सू राजपूताना राइफल्स के बटालियन में थे। वह कारगिल युद्ध के दौरान लोन हिल्स पर 28 जून 1999 को दुश्मनों को पटखनी देते हुए शहीद हो गए थे। युद्ध के मैदान में दुश्मनों को खदेड़ देने वाले इस योद्धा को सरकार ने मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्मानित किया।
भारतीय सेना द्वारा घोषित विजय
26 जुलाई 1999 को सेना ने मिशन को सफल घोषित किया। लेकिन जीत की कीमत ज्यादा थी। कैप्टन विक्रम बत्रा कारगिल युद्ध के दौरान शहीद हुए वीर जवानों में से एक थे। बत्रा को मरणोपरांत भारत के सर्वोच्च वीरता सम्मान परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। हाल ही में विक्रम बत्रा के जीवन पर आधारित शेरशाह नाम की एक फिल्म बनी थी।
ब्रॉक चिशोल्म ने प्रसिद्ध रूप से कहा, “कोई भी युद्ध नहीं जीतता।।। नुकसान के विभिन्न स्तर होते हैं, लेकिन कोई भी जीतता नहीं है।” कारगिल युद्ध के परिणाम विनाशकारी थे। बहुत सी माताओं और पिताओं ने अपने बेटों को खोया और भारत ने बहुत से बहादुर सैनिकों को खो दिया। कारगिल युद्ध में भारतीय सेना के 527 सैनिक शहीद हुए जबकि पाकिस्तान के 357 सैनिकों ने अपनी जान गंवाई। इस युद्ध में 453 आम नागरिकों की भी मौत हुई थी।
कारगिल विजय दिवस 2022 समारोह
इस साल करगिल विजय दिवस की 23वीं वर्षगांठ है। भारतीय सेना ने दिल्ली से कारगिल+विजय+ दिवस मोटर बाइक अभियान को हरी झंडी दिखाई। युद्ध स्मारक पर ध्वजारोहण समारोह के लिए एक विशेष कार्यक्रम की योजना बनाई गई है। शहीदों के परिवारों का स्मारक स्थल में सम्मान किया जाएगा। इस अवसर पर द्रास में सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन करने की भी योजना है। कार्यक्रम में शेरशाह की टीम मौजूद रहेगी। इस कार्यक्रम में कोरियोग्राफ किए गए नृत्य प्रदर्शन, देशभक्ति गीतों का प्रदर्शन किया जाएगा।
कारगिल युद्ध स्मारक, इंडिया [ Kargil War Memorial, India ]
“भारतीय सेना द्वारा द्रास में स्थित कारगिल वार मेमोरियल का मुख्य प्रवेश द्वार”
भारतीय सेना द्वारा द्रास में टोलोलिंग हिल की तलहटी [ Foothills ] में कारगिल वार मेमोरियल बनाया गया हैं। यह मेमोरियल शहर के मध्य से 5 कि। मी। की दूरी पर टाइगर हिल के पार बनाया गया हैं। इसका निर्माण कारगिल युद्ध में शहीद हुए जवानों की याद में किया गया हैं। मेमोरियल के मुख्य द्वार पर 20वीं सदी के प्रसिद्ध हिंदी कवि श्री माखनलाल चतुर्वेदी द्वारा लिखित कविता “ पुष्प की अभिलाषा ” लिखी हुई हैं। मेमोरियल की दीवारों पर उन जवानों के नाम अंकित हैं, जिन्होंने कारगिल युद्ध में अपने प्राणों का बलिदान दे दिया, आगंतुकों [ Visitors ] द्वारा इन्हें पढ़ा जा सकता हैं।
एक संग्रहालय [ Museum ] मेमोरियल से ही जुड़ा हुआ हैं, जिसका निर्माण ऑपरेशन विजय की सफलता और हमारे देश की जीत को मनाने के लिए किया गया हैं। इस संग्रहालय में हमारे देश के बहादुर जवानों के चित्र, युद्ध के महत्वपूर्ण दस्तावेज़ और रिकॉर्डिंग्स, पाकिस्तानी हथियार और युद्ध में प्रयुक्त सेना के औपचारिक प्रतिक, आदि रखे गये हैं।
इस मेमोरियल के अलावा हमारे देश कर पटना शहर में भी ‘कारगिल वार मेमोरियल’ बनाया गया हैं। यह भी हमारे देश की विजय का प्रतिक हैं।
कारगिल दिवस पर अनमोल वचन (Kargil War Vijay Diwas History Quotes)
कारगिल दिवस पर कुछ सुविचार इस प्रकार है –
- वहाँ बिना किसी लिखित आदेश के वापस ले लिया जायेगा और ये आदेश वहाँ कभी भी जारी नही होंगे।
- चुप रहने के लिए बर्फ में पड़ाव थे, जब बिगुल बजेगा तब वे आगे बढ़ेंगे और फिर से मार्च करेंगे।
- अगर कोई व्यक्ति यह कहता है कि वह मौत से नहीं डरता है, तो वह यक़ीनन या तो झूठ बोल रहा होता है या तो वह गुरखा (Gurkha) होता है।
- कुछ लक्ष्य इतने योग्य है, कि ये हारने के लिए भी गौरवशाली है।
- आप कभी भी नहीं रह सकते जब तक आप करीब – करीब मर नहीं जाते, और इसके लिए जो लड़ाई का चयन करता है, उनके जीवन में विशेष स्वाद होता है, इसके संरक्षण (Protection) का कभी भी पता नही चलेगा।
- आश्चर्य है कि क्या हमारे देश के राजनितिक राजाओं में से जिन्हें देश की रक्षा के लिए रखा गया है वे एक गोरिल्ला से गुरिल्ला, एक मोटर से मोर्टार, एक तोप से बंदूक भेद सकते है? हालांकि महान कई और भी हो सकते है।
- शत्रु हमसे सिर्फ 450 वर्ग फ़ीट दूर है, हम अधिक मात्रा में है। मैं एक इंच भी वापस नहीं करूँगा, लेकिन हमें हमारे आखिरी आदमी और आखिरी दौर के लिए लड़ना होगा।
- यदि मेरी मौत पर मेरा खून साबित करने से पहले हमला हो गया, तो मैं कसम खाता हूँ कि मैं मौत को मार दूंगा।
- नहीं सर, मैं मेरे टैंक का परित्याग नहीं करूँगा। मेरी बन्दूक काम कर रही है और मैं इन कमीनों से भीड़ जाऊंगा।
- मैं अपने देश के लिए और अधिक चोटियों पर कब्ज़ा करना चाहता हूँ।